Friday, June 4, 2010

ढोंग पाखण्ड जिंदाबाद !तो नहीं ख़तम होगा आतंकवाद!!

६ अप्रैल से दंतेवाड़ा से प्रारंभ हुआ नक्सली आतंकवाद लगातार बढ़ता जा रहा है.नक्सली और सैन्य बल कर्मी दोनों भारत माँ की संतानें हैं और एक दुसरे के खून की प्यासी हो रही हैं.नक्सलियों को वायुसेना के प्रहार से नष्ट करने की मांग ज़ोर पकड़ रही है परन्तु नक्सलवाद के उभार के जो कारण हैं उन्हें दूर करने की मांग दबाई जा रही है.अभी २ मई से २३ जुलाई तक गुरु मीन राशी में रहकर शनि से सम-सप्तक योग बना रहा है-यह जन साधारण के हित में नहीं है;चाहे लैला नमक समुद्री तूफ़ान हो या छत्तीस गढ़ का नक्सली आन्दोलन,पिसना गरीब जनता को ही पद रहा है.सरकारी दमन से नक्सलवाद को कुछ समय के लिए दबाया तो जा सकता है परन्तु सदा के लिए समाप्त नहीं किया जा सकता.यह छोटी सी बात सरकार चलने वाले या सरकार की आलोचना करने वाले नेतागण नहीं समझ रहे हैं या जानबूझ कर नहीं समझना चाह रहे हैं यह शोध का विषय नहीं है.स्पष्ट है की लोकतान्त्रिक सरकार जनता की,जनता द्वारा और जनता के लिए सैद्दांतिक अवधारणा मात्र है.वस्तुतः सरकार बनाने और चलाने में धनाढ्य और साफ साफ कहा जाये तो पूंजीपति वर्ग का हाथ रहता है जो जन साधारण के हित की बात सोच ही नहीं सकता। स्वाभाविक रूप से पूजीपति वर्ग से प्रभावित सरकारें चाहे वे जिस भी दल की हों पूंजीपति वर्ग का ही हित साधन सोच व संपन्न कर सकती हैं.तंत्र पर जन नहीं प्रभावी है बल्कि जन पर तंत्र हावी है.ऐसे में यदि जन साधारण अपने हक़ और हुकूक की बात करता है तो उसे अनसुना करदिया जाता है तभी नक्सलवाद जन को प्रभावित कर ले जाता है.नक्सलवाद कोई सिरफिरे देशद्रोही नौजवानों का खेल नहीं है जैसा की किसी मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है।
नक्सलवाद १९६७ में बंगाल के सिलिगुरी के निकट नक्सलबारी से शुरू हुआ था.१९६९ में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से अलग होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिन वादी) का गठन करने वाले नेताओं और उनके विभाजित अनुयाइयों द्वारा संचालित सशस्त्र आन्दोलन ही नक्सलवाद है.१९६४ में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन से भाकपा (M) का गठन हुआ था जबकि भाकपा का गठन १९२५ में कानपूर में हुआ था जिसको गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे उद्भट विद्वान का समर्थन प्राप्त था.१९१७ में रूस में लेनिन के नेत्रत्त्व में कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना से प्रभावित हो कर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के उद्भट और कर्मठ नेताओं ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की थी.१९२५ में ही स्थापित आर.एस.एस.(जो साम्राज्यवादियों से समर्थन प्राप्त था) का राजनैतिक संगठन तो ६ वर्ष तक केंद्र सरकार का नेत्रत्त्व करने में कामयाब रहा परन्तु कम्युनिस्ट आन्दोलन बिखरते बिखरते जनता से दूर हो गया.तमाम विद्वानों,बुद्दिजीवियों,लेखकों,कवियों,रंगकर्मियों समर्थन प्राप्त होने के बावजूद भी कम्युनिस्ट आम जनता को प्रभावित करने में असमर्थ रहे इसीलिए जनता और सत्ता से दूर रहे.पश्चिम बंगाल और केरल में वाम मोर्चा की सरकारें प्रचलित तंत्र और ढर्रे पर ही चलीं.चूंकि वे कोई क्रांतिकारी कदम उठा ही नहीं सकती थीं न उठा ही सकीं.आज सोवियत संघ ही बिखर गया,कम्युनिज्म उखड गया कम्युनिस्ट हताशा निराशा में चले गए. जब सभी कम्युनिस्ट एकजुट भी थे तभी उनके विरुद्ध १९३० में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हो चुकी थी जिसके पुरोधा डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने अपनी पुस्तक इतिहास चक्र में लिखा है की,भारत के लिए कोई भी यूरोपीय वाद न तो पूँजी वाद और न ही साम्यवाद उपयुक्त है.परन्तु डॉक्टर लोहिया समाजवाद का समर्थन करते थे.समाजवाद वह आर्थिक प्रणाली है जिसमे उत्पादन व वितरण के साधनों पर समाज का नियंत्रण हो.यदि व्यव्हार में ऐसा भी होता या गाँधी जी का ट्रस्टीशिप सिद्दांत ही अमल में लाया जाता तो आज नक्सल वाद की कोई समस्या ही नहीं होती.कम्युनिज्म पूर्णतः भारतीय दर्शन है न तो खुद कम्युनिस्टों ने कभी दावा किया न ही विद्वानों ने कभी सोचा की महर्षि कार्ल मार्क्स ने जिस सिद्दांत का प्रतिपादन किया वो मौलिक रूप से भारतीय दर्शन ही है.साम्यवाद का मूल मन्त्र है प्रत्येक से उसकी योग्यतानुसार और प्रत्येक को उसकी आवश्यकतानुसार.सर्वे सन्तु निरामयः और सर्वे सन्तु सुखिनः की कामना की सुन्दर व्याख्या आधुनिक युग में पहलेपहल महर्षि कार्ल मार्क्स ने ही की थी दास कैपिटल एवं कम्युनिस्ट मनिफैस्तो द्वारा मार्क्स ने मानव द्वारा मानव के शोषण का पुर जोर विरोध किया था.कार्लमार्क्स मूलतः जर्मन थे जहाँ के मैक्समूलर साहब ने भारत में ३० वर्ष रहकर संस्कृत का गहन अध्ययन किया था और हमारी प्राचीन पांडुलिपियों को लेकर जर्मन चले गए थे.वेदोक्त सिद्दांतों का मक्स्मूलर साहब ने जर्मन भाषा में अनुवाद किया था और उन्ही का पूर्ण अध्ययन करने के बाद महर्षि कार्लमार्क्स ने साम्यवाद के सिद्दांतों का निरूपण किया था इसलिए मार्क्स के सिद्दांत पूर्णतः भारतीय दर्शन पर आधारित हैं.रूस में साम्यवाद की विफलता का कारण भारतीय दर्शन का अनुपालन न होने की वजह है.भारतीय कम्युनिस्टों की विफलता का कारण भी भारतीय दर्शन से दूरी बनाये रखना ही है और यही वजह है की भारत की जनता अपने ही दर्शन से कटे होने के कारण त्राहि त्राहि कर रही है.साम्राज्यवादियों द्वारा प्र्ष्ठपोषित तथाकथित भारतीयता वादियों के दर्शन में साधारण जन का हित साधन नहीं है वे तो पूंजीपतियों के हित चिन्तक हैं.
आर्ष चरित्रों की पूंजीवादी व्याख्या -हमारे प्राचीन आर्ष चरित्र चाहे वे मर्यादा पुर्शोत्तोम श्री राम हों या योगिराज श्री कृष्ण ,उत्तरवर्ती महावीर जिन हों या तथागत बुद्ध ,मध्य युगीन गुरुनानक,कबीर,तुलसीदास,आधुनिक दयानंद सरस्वती,विवेकानंद,रजा राम मोहन राय,लाला लाजपत राय,विपिनचन्द्र पाल ,बाल गंगाधर तिलक आदि महापुरुषों को पूंजीवादियों ने इस रूप में पेश किया है की वे सबल वर्ग का समर्थन करते हैं जबकि हकीकत यह है की इनमे से प्रत्येक तथा बाद के डॉ.अम्बेडकर,महात्मा गाँधी आदि सभी ने निर्बल व असहाय वर्ग के उत्थान के लिए प्रयास किया है.तुलसीदास ने रामचरितमानस को सर्वजन हिताय लिखा है जिसमे कागभुशुंडी से गरुण को उपदेश दिलाते हुए उन्होंने समाज में हेय वर्ग के उत्थान का सन्देश दिया है परन्तु आज के ढोंगी और पाखंडियों ने क्रन्तिकारी कृति का पून्जिवादिकरण कर लिया है और उसका अखंड पाठ करने के नाम पर जनता को भ्रमित कर रखा है.रामचरितमानस का अखंड पाठ करने पुस्तक की पूजा करने और आरती उतारने से किसी का भला होने वाला नहीं है.तुलसीदास जी के मर्म को समझने की आवश्यकता है उन्होंने अपने महाकाव्य के माध्यम से उत्पीडित जनता को साम्राज्यवादी शोषण के विरुद्द जाग्रत कर संघर्ष करने का आह्वाहन किया है जिस प्रकार राम ने साम्राज्यवादी रावन का संहार कर के किया था.परन्तु आज हमारे देश में हो क्या रहा है-रामचरित मानस का पाठ ,भोग,आरती,और शोषकों उत्पीदकों का महिमा मंडन इसी प्रकार अन्याय का विरोध करने वाले योगिराज श्री कृष्ण के उच्च एवं आर्ष चरित्र को रासलीला के माध्यम से एक रसिक के रूप में पेश करदिया गया है.श्री कृष्ण के ताप और त्याग को भुला कर उनकी जन्माष्टमी को भोग कीर्तन,आरती तक सीमित कर दिया गया है.परिणाम हमारे और आप के सब के सामने हैं-अशांति,अव्यवस्था,अराजकता और आतंकवाद।
यदि हमें विश्व को सुन्दर,सुखद व सम्रद्द बनाना है ,मानव द्वारा मानव के शोषण को समाप्त करना ही होगा.जब तक दरिद्र नारायण की सच्ची सेवा नहीं होगी,प्रत्येक निर्धन के घर में दीपक की रौशनी नहीं होगी केवल मुट्ठी भर धनवानों की चलती रहेगी तो हमारा भारत ही नहीं पूरी दुनिया कराहती रहेगी.आज यहाँ,कल वहां,आतंकवाद का साया छाया रहेगा ढोंग व पाखंड को छाती से चिपका कर खुशहाली के सपने देखना आकाश -कुसुम तोड़ने जैसा ही है ये याद रखें.

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