Monday, October 11, 2010

"गुलामी से पहले ऐसा नहीं था "







प्रस्तुत कटिग जो बयान कर रहीं है वैसा हमारे देश में प्राचीन काल से नहीं था .यह सब ११ सौ १२ सौ वर्षों की गुलामी का नतीजा है .परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला होता  है और माँ बच्चे की प्रथम गुरु होती है .विदेशी शासकों ने देशी विद्वानों को प्रलोभन दे कर ऐसे धार्मिक नियमों का निरूपण कराया जो परिवार और उसमे मात्र शक्ति की भूमिका का क्षरण करते थे .जैसे -२ गुलामी मज़बूत होती गई ऐसी -वैसी कुरीतियाँ जोर पकडती गईं और नतीजा आज सबके सामने है .प्राचीन भारत में स्त्री व पुरुष का समान महत्व था या कुछ अधिक ही स्त्री का महत्व था .सीता ने तो राम के शासन के विरुद्ध विद्रोह ही कर दिया था और अपने पुत्रों से उन्हें परास्त भी करा दिया था .रानी कैकेयी ने भी महाराजा दशरथ के निर्णय को उलट दिया था .आधुनिक युग में भी हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने जिस विजय नगर साम्राज्य की स्थापना की थी उसमे भी स्त्री सेनापति थीं .आज महिलाएं यदि शोषण के विरुद्ध मनसा -वाचा -कर्मणा संग गठित हो तो कोई गुलामी का नियम समाज में टिक ही नहीं सकता .
  मैंने कई कमुनिस्ट परिवारों में गुलामी के प्रतीक नियमों का पालन होते देखा है और इसका कारण उन परिवारों की महिलाएं स्वंय ही हैं .उ .प्र .के शिक्षा मंत्री रहे वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता का .झारखंडे राय की मृत्यु के उपरांत उनकी पत्नी ने देश भर के कामरेड्स को "ब्रहम भोज "का निमंत्रण भेजा था .
 आज पूर्ण शिक्षित और आत्म निर्भर महिलाएं भी गुलामी के प्रतीकों को (जिनका कोई वैज्ञानिक महत्व नहीं है )अपना गौरव मान कर शिरोधार्य किये हुए हैं क्यों ?हाथ कंगन को आरसी क्या ? पढ़े लिखे को फारसी क्या ? मेरी छोटी बहन डा .शोभा माथुर ने हिन्दी व संस्कृत में एम् .ए .,संस्कृत में पी .एच .ड़ी की है .बरुआ सागर झांसी के डिग्री कालेज में अधिवक्ता तथा आर्मी स्कूल में वाइस प्रिंसिपल रहीं हैं .क्या मै उन्हें संकीर्ण प्रथाओं को त्यागने का परामर्श दे सकता हूँ ?क्या वह मान लेंगी ?बहन को क्या कहें जब पत्नी पूनम जो एम् .ए .,बी .एड .,एम् .बी .ए .हैं और एस .सी.इ .आर .टी .,पटना के माध्यम से जनता को जागरूक कर चुकी हैं .स्कूलों में बच्चों को पढ़ा चुकी हैं ,मेरी सारी क्रांतिकारिता को "करवा चौथ "करके ध्वस्त कर देती हैं .सामाजिक रूढियो की विकृतियों को केवल महिलाएं ही तोड़ सकती हैं .मै अपने अनुभव के आधार पर पुरुषों को बेबस मानता हूँ .खैर नवरात्रों में देवी दुर्गा का यह अर्गला स्तोत्र सुनीये  जिसमे स्त्री शक्ति का कितना महत्व  है :-








2 comments:

Anonymous said...

आपके कथनों से शत प्रतिशत सहमत हूँ....विडियो के लिए शुक्रिया..
मेरे ब्लॉग पर इस बार

एक और आईडिया....

ZEAL said...

बहुत सटीक लिखा है आपने। विडिओ के लिए आभार ।