Wednesday, June 12, 2013

एलोपैथी के दुष्परिणाम और बचाव का उपाय---विजय राजबली माथुर

हिंदुस्तान-लखनऊ-28/03/2012 
भगवान=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न (नीर-जल) और क्योंकि प्रकृति के ये पाँच-तत्व खुद ही बने हैं इनको किसी ने बनाया नहीं है इसलिए ये ही 'खुदा' हैं एवं इंनका कार्य  =G( सृष्टि-जेनरेट)+O(पालन-आपरेट)+D(संहार-डेसट्राय) होने के कारण ये ही गाड(GOD)हैं।
उपरोक्त स्कैन किया समाचार तो प्रतीक है एलोपैथी चिकित्सा के दुष्परिणामों पर प्रकाश डालने का। त्वरित राहत के नाम पर लोगों की भीड़ एलोपैथी चिकित्सा की ओर आकर्षित होती है और एलोपैथी चिकित्सक मजबूर रोगी का जम कर दोहन करते और अपने महल सजाते हैं। एक समय जर्मनी के डॉ हेनीमेन ने इस लूट से क्षुब्ध होकर एक नई चिकित्सा प्रणाली का आविष्कार किया था जिसे उनके नाम पर आज 'होम्योपैथी' के नाम से जाना जाता है। यह पद्धती हमारी 'आयुर्वेदिक' पद्धति के सादृश्य है। 

आयुर्वेद को पंचम वेद भी माना जाता है जो कि 'अथर्ववेद'पर आधारित है। आयुर्वेद में 'वात','कफ़','पित्त' को महत्व दिया जाता है जब तक ये शरीर को धारण करने के योग्य रहते हैं इनको 'धातु' कहा जाता है जब ये विकृत होने लगते हैं तब इनको 'दोष' और जब मलिन हो जाते हैं तब 'मल' कहा जाता है। 

'वायु' +'आकाश'-गगन तत्व = वात 
'भूमि'+'जल'तत्व= कफ़ 
'अग्नि' तत्व=पित्त 

'भगवान' के ये पांचों तत्व 'धातु' के रूप में 'सृष्टि व 'पालन'करते हैं तथा 'दोष' होकर 'मल'बन जाने पर संहार कर देते हैं। इसी लिए हमारे वैज्ञानिक ऋषियों ने 'हवन'='यज्ञ' का आविष्कार किया था। हवन या यज्ञ में जब जड़ी-बूटियों से निर्मित सामग्री को अग्नि मे डाला जाता है तो अग्नि अपने गुण के अनुसार डाले गए पदार्थों को परमाणुओं =एटम्स में विभाजित कर देती है एवं सर्वत्र व्यापक वायु उन परमाणुओं को सर्वत्र फैला देती है। इससे न केवल 'पर्यावरण' शुद्ध रहता है बल्कि मनुष्य स्वस्थ व दीर्घजीवी रहता है। ब्लड प्रेशर आदि जिन रोगों में घी खाने से परहेज करना बताया जाता है उन रोगों में भी 'हवन' पद्धति में घी के संस्कारित परमाणु नासिका के जरिये शरीर में प्रविष्ट होकर 'रक्त' में घुल कर शरीर को सबल बनाते हैं और 'हड्डियों' को मजबूती प्रदान करते हैं। यदि पहले की ही तरह 'बाल्यकाल' से ही हवन करने की आदत डाली जाये तो बुढ़ापे मे जाकर हड्डियों के कमजोर होने की नौबत ही नहीं आने पाये अतः 'फ्रेक्चर' आदि का सवाल ही न उठे। किन्तु आज कारपोरेट कल्चर में हवन संस्कृति को अपनाने को कोई तैयार ही नहीं है तब तो एलोपैथी चिकित्सकों द्वारा लूटे जाने के सिवा कोई दूसरा उपाय भी नहीं है।