Tuesday, February 4, 2014

'नीर में शरीर तो उतारिए!वर्तमान को अभी संवारिए!!' : कहते हैं डॉ डंडा लखनवी जी ---विजय राजबली माथुर

बसंत पंचमी को विद्या की देवी सरस्वती उपासना के साथ भी जोड़ा जाता है। यह संसार एक पाठशाला है और यहाँ निरंतर विद्याध्यन चलता रहता है। यही संसार नित्य परीक्षालय भी है और यहाँ नित्य परीक्षाएं भी चलती रहती हैं। परमात्मा और प्रकृति एक प्रेक्षक (इनविजिलेटर) की भांति प्रत्येक मनुष्य के द्वारा अर्जित ज्ञान के आधार पर प्रत्येक 'कर्म' को देखते हुये भी उसकी परीक्षा के दौरान रोकते -टोकते नहीं हैं। किन्तु यही परमात्मा और प्रकृति उस व्यक्ति के संसार छोडने पर उस व्यक्ति द्वारा सम्पन्न-कर्म(सदकर्म एवं दुष्कर्म) तथा अकर्म के आधार पर उसका एक परीक्षक (एग जामनर) के तौर पर मूल्यांकन करके उसकी  आत्मा हेतु आगामी जन्म का निर्धारण करते हैं। कोई भी 'मनुष्य' केवल मनन करने के ही कारण मनुष्य होता है अन्यथा उसमें एवं अन्य प्राणियों में कोई अंतर नहीं है। 

मननशील मनुष्यों में परोपकार -परमार्थ के गुण विद्यमान रहते हैं और उनके 'कर्म' स्व पर  न केन्द्रित होकर समष्टि -हित पर आधारित होते हैं। ऐसे ही एक विद्वान महापुरुष हैं डॉ डंडा लखनवी जी। डॉ साहब से मेरा परिचय सोशल मीडिया 'फेसबुक' के माध्यम से उनके लेखन के आधार पर हुआ है। लखनऊ में ही रहने के कारण कई गोष्ठियों में उनसे व्यक्तिगत रूप से भी मुलाक़ात होती रही है और हर बार उनसे आत्मीयता का अनुभव होता रहा है। गत वर्ष फेसबुक के माध्यम  से ही आदरणीया  भाभी जी (श्रीमती सुमन वर्मा) के निधन की सूचना प्राप्त हुई तो स्वंय को उनके घर जाने से न रोक सका हालांकि इससे पूर्व बेहद इच्छा के बावजूद जाना न हो सका था। फिर थोड़ी देर के लिए 'शांति-हवन' के अवसर पर भी उनके घर गया था। तब से फिर डॉ साहब से दोबारा मिलने की सोचते-सोचते 30 जनवरी 2014 को उनके दर्शन प्राप्त करने जा सका। यह डॉ  डंडा लखनवी साहब की आत्मीयता ही है कि उन्होने अपनी ज्ञानवर्द्धक पुस्तक  'बड़े वही इंसान' मुझे आशीर्वाद स्वरूप भेंट की। 1995 में प्रकाशित इस पुस्तक के संबंध में स्व.शिवशंकर मिश्र जी ने लिखा है :

'प्रस्तुत संकलन की सभी रचनाएँ एक नए जीवन की सृष्टि करती हैं और एक नई विचार-धारा का सूत्रपात। 'कृतु'के समान इन रचनाओं में कवि ने अपने भावों को नहीं आत्मा को स्वर और स्वरूप दिया है। इस कृति के कुछ गीत और गीतों की टेक गंधमादन के समान आकर्षक और पाठकों को मंत्र मुग्ध करती है। सभी रचनाओं में भारतीय संस्कृति निर्झर्णी बनकर प्रवाहमान है। कवि की इन बहुरंगी कविताओं का चिंतन बिन्दु एक ही है,जिसे भगवान बुद्ध ने अपने ढंग से यूं कहा था-'जब स्व और समष्टि के बीच का भेद दूर हो जाता है तब दोनों के हित एक साथ मिल जाते हैं और फिर विभेद वैसे ही लुप्त हो जाते हैं जैसे वर्षा के आगमन के साथ उष्णता।'..."

डॉ शम्भूनाथ जी ने लिखा है-"श्री लखनवी के प्रस्तुत गीत-संकलन की रचनाएँ जहां अंधकार की शक्तियों से जूझने के लिए जीवटता  प्रदान करती हैं ,वहीं मूल्यों एवं मर्यादाओं से संस्कारित उनकी दृष्टि आलोक पथ की ओर बढ्ने हेतु उत्प्रेरित भी करती है। "

डॉ तुकाराम वर्मा जी लिखते हैं-"निश्चित रूप से आपके द्वारा विरचित 'बड़े वही इंसान'-गीत संकलन भावी पीढ़ी के लिए ऊर्जादायक दिशाबोधक तथा साहित्यकारों के लिए प्रेरणा-स्त्रोत सिद्ध होगा। "

और खुद डॉ डंडा लखनवी जी कहते हैं-

"एक गुलामी तन की है,एक गुलामी मन की है। 
इन दोनों से जटिल गुलामी ,बंधे हुये चिंतन की है। । "

.......... "जन -जन को यह कृति बड़ा इंसान बनाने में सहायक हो यही आकांक्षा है। "

 विद्या पर्व 'बसंत पंचमी ' के अवसर पर उनकी  कुछ अत्यावश्यक ज्ञानवर्द्धक रचनाएँ  इस ब्लाग के माध्यम से प्रस्तुत करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ:







सोई हुई मानवता को जगाने के लिए उनका यह दिव्य संदेश कितना उत्प्रेरक है ;देखिये:


  ~विजय राजबली माथुर ©
 इस पोस्ट को यहाँ भी पढ़ा जा सकता है।

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