Tuesday, March 14, 2017

सपा सरकार को उनके भीतरघातियों ने ही हरवाया है ------ विजय राजबली माथुर

*इन चुनावों में उत्तर प्रदेश में सत्तरूढ़ दल की हार के लिए दल के भीतर और बाहर मुख्यमंत्री तथा पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव जी को ही उत्तरदाई ठहराया जा रहा है किन्तु यह सच्चाई से मुंह मोड़ना ही है। वस्तुतः पार्टी में स्थापित रहे लोगों के प्रति व्यक्तिगत रूप से निष्ठावान रहे कार्यकर्ताओं ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के प्रचार का कार्य न करके उनके साथ  लाल टोपी पहन कर बतौर खुफिया चलते रहे और सारी सूचनाएँ विरोधियों को देते रहे।..... सपा अल्पसंख्यक सभा की एक नेत्री के पत्रकार पुत्र खुल कर भाजपा प्रत्याशी के लिए कार्य करते रहे , अल्पसंख्यक सभा के ही स्थानीय पार्षद विरोधी लोग मंत्री जी के साथ चलते हुये भी भाजपा के लिए अंदरूनी तौर पर कार्य करते रहे। .....पूरे प्रदेश में यही स्थिति रही है। अखिलेश जी को बदनाम करके पुनः स्थापित लोगों को पार्टी पर काबिज करने के लिए सरकार को उनके भीतरघातियों ने ही हरवाया है। 
( हमारे इस निष्कर्ष की पुष्टि स्वम्य  अखिलेश जी के इस कथन से भी हो जाती है। ) : 

*यह तो तय है कि, अखिलेश जी ने जो लेपटाप छात्रों को पढ़ने के लिए दिये थे वे गरीब छात्रों ने बेच दिये थे जिनको भाजपा के लोगों ने खरीद लिया था और उनके जरिये सोशल मीडिया पर सपा व अखिलेश जी के ही विरुद्ध धुआ धार प्रचार किया गया था। उनकी सरकार ने जिन कारपोरेट कंपनियों में बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलवाया था उन युवाओं का प्रयोग कारपोरेट कंपनियों ने भाजपा के प्रचार मे जम कर किया था।








Kanwal Bharti

"यह फितूर अभी तक नहीं निकला है कि 2007 के चुनाव में इसी सोशल इंजिनियरिंग ने उन्हें बहुमत दिलाया था. जबकि वास्तविकता यह थी कि उस समय कांग्रेस और भाजपा के हाशिए पर चले जाने के कारण सवर्ण वर्ग को सत्ता में आने के लिए किसी क्षेत्रीय दल के सहारे की जरूरत थी, और यह सहारा उसे बसपा में दिखाई दिया था. यह शुद्ध राजनीतिक अवसरवादिता थी, सोशल इंजिनियरिंग नहीं थी. अब जब भाजपा हाशिए से बाहर आ गयी है और 2014 में शानदार तरीके से उसकी केन्द्र में वापसी हो गयी है, तो सवर्ण वर्ग को किसी अन्य सहारे की जरूरत नहीं रह गयी, बल्कि कांग्रेस का सवर्ण वोट भी भाजपा में शामिल हो गया. लेकिन मायावती हैं कि अभी तक तथाकथित सोशल इंजिनियरिंग की ही गफलत में जी रही हैं, जबकि सच्चाई यह भी है कि मरणासन्न भाजपा को संजीवनी देने का काम भी मायावती ने ही किया था. उसी 2007 की सोशल इंजिनियरिंग की बसपा सरकार में भाजपा ने अपनी संभावनाओं का आधार मजबूत किया था."
https://www.facebook.com/kanwal.bharti/posts/10202653799143390


"लेकिन यह भी बिलकुल सच है कि, कांशीराम - मुलायम समझौते के बाद सत्तारूढ़ 'सपा - बसपा गठबंधन' की सरकार को मायावती जी ने भाजपा के सहयोग से तोड़ कर और भाजपा के ही समर्थन से खुद मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया था। दो बार और भाजपा के ही समर्थन से सरकार बनाई थी तथा गुजरात चुनावों में मोदी के लिए अटल जी के साथ चुनाव प्रचार भी किया था। भाजपा की नीति व नीयत साफ थी कि, मायावती जी के जरिये मुलायम सिंह जी व सपा को खत्म कर दिया जाये और बाद में मायावती जी व बसपा को यह सब जानते हुये भी मायावती जी भाजपा की सहयोगी रहीं थीं। यदि वह 'सपा - बसपा गठबंधन' मायावती जी ने भाजपा के फायदे के लिए न तोड़ा होता तो आज 2017 में भाजपा द्वारा न तो सपा को और न ही बसपा को हानी पहुंचाने का अवसर मिलता वह केंद्र की सत्ता तक पहुँच ही न पाती। "
http://vijaimathur.blogspot.in/2017/03/blog-post_12.html

"हालांकि अब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राज बब्बर और बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती जी ने भी EVM मशीनों से छेड़ - छाड़ की संभावना व्यक्त की है। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान बनारस में ऐसी ही कारवाई का ज़िक्र खूब हुआ था किन्तु केंद्र में भाजपा की सरकार बन जाने से हुआ कुछ भी नहीं। अब भी इन संभावनाओं और आरोपों पर कुछ भी नहीं होने जा रहा है।
वस्तुतः ऐसी छेड़ - छाड़ हुई अथवा नहीं प्रामाणिक रूप से सिद्ध किया जाना मुश्किल ही है। परंतु यह तो तय है कि, अखिलेश जी ने जो लेपटाप छात्रों को पढ़ने के लिए दिये थे वे गरीब छात्रों ने बेच दिये थे जिनको भाजपा के लोगों ने खरीद लिया था और उनके जरिये सोशल मीडिया पर सपा व अखिलेश जी के ही विरुद्ध धुआ धार प्रचार किया गया था। उनकी सरकार ने जिन कारपोरेट कंपनियों में बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलवाया था उन युवाओं का प्रयोग कारपोरेट कंपनियों ने भाजपा के प्रचार मे जम कर किया था। "
http://vijaimathur.blogspot.in/2017/03/blog-post_11.html


https://www.facebook.com/permalink.php?story_fbid=1381183768611920&id=100001609306781

इन चुनावों में उत्तर प्रदेश में सत्तरूढ़ दल की हार के लिए दल के भीतर और बाहर मुख्यमंत्री तथा पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव जी को ही उत्तरदाई ठहराया जा रहा है किन्तु यह सच्चाई से मुंह मोड़ना ही है। वस्तुतः पार्टी में स्थापित रहे लोगों के प्रति व्यक्तिगत रूप से निष्ठावान रहे कार्यकर्ताओं ने पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के प्रचार का कार्य न करके उनके साथ  लाल टोपी पहन कर बतौर खुफिया चलते रहे और सारी सूचनाएँ विरोधियों को देते रहे। एक मंत्री महोदय को उनके ई - मेल पर इसकी सूचना तभी दी थी जिस पर शायद ध्यान देने की उनको फुर्सत नहीं थी। सपा अल्पसंख्यक सभा की एक नेत्री के पत्रकार पुत्र खुल कर भाजपा प्रत्याशी के लिए कार्य करते रहे , अल्पसंख्यक सभा के ही स्थानीय पार्षद विरोधी लोग मंत्री जी के साथ चलते हुये भी भाजपा के लिए अंदरूनी तौर पर कार्य करते रहे।पूरे प्रदेश में यही स्थिति रही है। अखिलेश जी को बदनाम करके पुनः स्थापित लोगों को पार्टी पर काबिज करने के लिए सरकार को उनके भीतरघातियों ने ही हरवाया है। 

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