Monday, July 3, 2017

एक देश-एक टैक्स! तो फिर सबके लिए एक समान पढ़ाई और दवाई की व्यवस्था क्यों नहीं? यह कैसा राष्ट्रवाद? ------ प्रो. दिवाकर





Uma Raag
GST पर पढ़िए वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रो. दिवाकर (ए.एन.एस. समाज अध्ययन संस्थान, पटना) 
एक देश-एक टैक्स! तो फिर सबके लिए एक समान पढ़ाई और दवाई की व्यवस्था क्यों नहीं? यह कैसा राष्ट्रवाद?...............क्या अब बजट और वित्तीय आयोग की जरुरत भी ख़त्म हो जाएगी ? 
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वस्तु एवं सेवा कर १ जुलाई से लागू करने जा रही है। नारा है- एक राष्ट्र, एक बाजार, एक कर। करों की दर ०, ५, १२, १८, २८ प्रतिशत है। सोना और जवाहरात की दर ३ फीसदी है।
पेट्रोलियम, रियल एस्टेट , जवाहरात और शराब को इससे अलग रखा गया है। क्यों ? क्योंकि यह कारोबार छोटे व्यापारी नहीं करते हैं।
ऐसी विलासिता की वस्तुओं के कर जो कि २८ से अधिक है कई का तो ४० से भी अधिक! वो अब २८ हो गया। जो लोग कर के दायरे में नहीं थे, वो कर दायरे में आ गए, कफन भी। ब्रेल टाइपराइटर पर भी ५%, लेकिन सोना पर ३%; समावेशी विकास है ना!
शिक्षा और स्वस्थ्य के निजी क्षेत्र को लूटने पर कोई कर नहीं। अब उत्पादन पर कर नहीं; यह गंतव्य आधारित कर है। इसे आर्थिक आज़ादी का जश्न भी कहा जा रहा है। किसकी आर्थिक आज़ादी ? छोटे व्यापारी कर के दायरे में। एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यापार के लिए अब कोई रोक-टोक नहीं होगा।
GST तीन सिद्धांत पर आधारित है; देश की आमदनी में कोई कमी ना हो, किसी पर अधिक बोझ ना पडे , सब को सामान कर लगे। बड़ी कंपनियों को खुली छूट और छोटे कारोबारियों को उनका मुकाबला करना पड़ेगा।
पूंजीवादी विकास का यही दस्तूर है। छोटे कारोबारी को मिटना होगा। 
उत्पादक नहीं उपभोक्ता बने रहेंगे पिछड़े राज्य; लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि उपभोक्ता बनने के लिए जेब में पैसे चाहिए जो रोजगार से आएगा। छोटे कारोबारी मिट जाएंगे बड़े कारोबारियों से प्रतियोगिता के चलते। असंगठित क्षेत्र पर बुरा असर पड़नेवाला है। उद्योग बढ़ेगा नहीं तो रोजगार नहीं। फिर खरीदने की ताकत कहाँ से आएगी?
जरा सोचिये किसकी आर्थिक आज़ादी? किसका जश्न ? कभी भाड़ा सामानीकरण से पिछड़े राज्यों के औद्योगिक विकास का अवसर छिन गया। अब कर सामानीकरण से पिछड़े राज्यों का औद्योगीकरण का अवसर और दूर चला जाएगा|
क्या तैयारी है ? आपाधापी क्यों ? किसको लाभ पहुंचाने की जल्दी है? सभी नागरिकों के लिए एक सामान शिक्षा और स्वस्थ्य सेवाओं के लिए; यही राजनितिक इच्छा शक्ति क्यों नहीं है ?

क्या अब बजट और वित्तीय आयोग की जरुरत भी ख़त्म हो जाएगी ? मुझे तो ऐसा ही लगता है!

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 ~विजय राजबली माथुर ©
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