Thursday, March 31, 2011

क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा

(पुण्यतिथि पर विशेष)

८१ वर्ष पूर्व सन१९३० की ३१ मार्च को महर्षि दयानंद सरस्वती के परम शिष्य एवं क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा ने इस संसार से विदा ली थी.उनकी पुण्य तिथि पर आप की सेवा में श्री सीताराम 'वैदिक'द्वारा लिखित तथा निष्काम परिवर्तन पत्रिका के अक्टूबर २००३ अंक में प्रकाशित लेख प्रस्तुत है-

प्रण करते हैं संस्कृति की शाम नहीं होने देंगे.
वीर शहीदों की समाधि बदनाम नहीं होने देंगे.
जब तक रग में एक बूँद भी गर्म लहू की बाकी है.
भारत की आजादी को गुमनाम नहीं होने देंगे..

१८५७ ई.की ऐतिहासिक क्रांति वाले वर्ष में ०४ अक्टूबर को कच्छ राज्य के माण्डवी गाँव में जन्में श्याम जी आजीवन क्रांतिकारी बने रहे.वे न केवल आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से १८८३ ई.में बी.ए.की डिग्री प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय थे अपितु अंगरेजी राज्य को हटाने के लिए विदेशों में भारतीय नवयुवकों को प्रेरणा देने वाले ,क्रांतिकारियों का संगठन करने वाले पहले हिन्दुस्तानी थे.

पं.श्याम जी कृष्ण वर्मा को देशभक्ति का पहला पाठ पढ़ाने वाले आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती थे.१८७५ ई. में जब स्वामी दयानंद जी ने बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की तो श्याम जी कृष्ण वर्मा उसके पहले सदस्य बनने वालों में से थे.स्वामी जी के चरणों में बैठ कर इन्होने संस्कृत ग्रंथों का स्वाध्याय किया.वे महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा के भी सदस्य थे.बम्बई से छपने वाले महर्षि दयानंद के वेदभाष्य के आप प्रबंधक भी रहे.१८८५ ई. में संस्कृत की उच्चतम डिग्री के साथ बैरिस्टरी की परिक्षा पास करके भारत लौटे.

इंग्लैण्ड में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रयासों को सबल बनाने की दृष्टि से श्याम जी ने अंगरेजी में जनवरी १९०५ ई. से 'इन्डियन सोशियोलोजिस्ट'नामक मासिक पत्र निकाला.१८ फरवरी १९०५ ई. को उन्होंने इंग्लैण्ड में ही 'इन्डियन होमरूल सोसायटी ' की स्थापना की और घोषणा की कि हमारा उद्देश्य' भारतीयों के लिए भारतीयों के द्वारा भारतीयों की सरकार 'स्थापित करना है.घोषणा को क्रियात्मक रूप देने के लिए लन्दन में 'इण्डिया हाउस'की स्थापना की ,जो कि इंग्लैण्ड में भारतीय राजनीतिक गतिविधियों तथा कार्यकलापों का सबसे बड़ा केंद्र रहा.

पं.श्याम जी भारत की स्वतंत्रता पाने का प्रमुख साधन सरकार से असहयोग करना समझते थे.आपकी मान्यता रही और कहा भी करते थे कि यदि भारतीय अंग्रेजों को सहयोग देना बंद कर दें तो अंगरेजी शासन एक ही रात में धराशायी हो सकता है.

शांतिपूर्ण उपायों के समर्थक होते हुए भी श्यामजी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हिंसापूर्ण उपायों का परित्याग करने के पक्ष में नहीं थे.उनका यह दावा था कि भारतीय जनता की लूट और हत्या करने के लिए सबसे अधिक संगठित गिरोह अंग्रेजों का ही है.जब तक अंग्रेज स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं तब तक हिंसक उपायों की आवश्यकता नहीं है,किन्तु जब सरकार प्रेस और भाषण की स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाती है,भीषण दमन के उपायों का प्रयोग करती है तो भारतीय देशभक्तों को अधिकार है कि वे स्वतंत्रता पाने के लिए सभी प्रकार के सभी आवश्यक साधनों का प्रयोग करें.उनका मानना था कि हमारी कार्यवाही का प्रमुख साधन रक्तरंजित नहीं है,किन्तु बहिष्कार का उपाय है.जिस दिन अंग्रेज भारत में अपने नौकर नहीं रख सकेंगे,पुलिस और सेना में जवानों की भर्ती करने में असमर्थ हो जायेंगे,उस दिन भारत में ब्रिटिश शासन अतीत की वास्तु हो जाएगा.

इन्होने अपनी मासिक पत्रिका इन्डियन सोशियोलोजिस्ट के प्रथम अंक में ही लिखा था कि अत्याचारी शासक का प्रतिरोध करना न केवल न्यायोचित है अपितु आवश्यक भी है और अंत में इस बात पर भी बल दिया कि अत्याचारी ,दमनकारी शासन का तख्ता पलटने के लिए पराधीन जाती को सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाना चाहिए.

ब्रिटिश सरकार की कड़ी आलोचना करने के कारण ब्रिटिश सरकार एन कें प्रकारें इनको गिरफ्तार कर क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाना चाहती थी.इसी क्रम में इन्हीं के साथ रह रहे वीर सावरकर की लन्दन में गिरफ्तारी से इन्होने वहां रहना उचित नहीं समझा और वे पेरिस चले गए,वहां से स्विट्जरलैंडके जिनेवा शहर में चले आये और मृत्यु पर्यंत ३१ मार्च ,१९३० तक वहीं रहे.



(नोट-श्री सीता राम 'वैदिक ' के लेख को साभार प्रस्तुत करने का उद्देश्य आने वाली पीढ़ियों को अपने महान क्रांतिकारियों से परिचय करना है जिन्होंने अपना जीवन देश को आजाद करने के संघर्ष में उत्सर्ग कर दिया .यह आने वाली पीढ़ियों का दायित्व है कि आजादी को अक्षुण रखते हुए इनका स्मरण करती रहें).

4 comments:

PAWAN VIJAY said...

क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा को प्रणाम


विजय जी प्रथम आगमन
देर आया हूँ लेकिन दुरुस्त हूँ
"तुम साथ हो जब अपने दुनिया को दिखा देंगे
हम मौत को जीने का अंदाज़ बता देंगे"

--

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

"इन्होने अपनी मासिक पत्रिका इन्डियन सोशियोलोजिस्ट के प्रथम अंक में ही लिखा था कि अत्याचारी शासक का प्रतिरोध करना न केवल न्यायोचित है अपितु आवश्यक भी है और अंत में इस बात पर भी बल दिया कि अत्याचारी ,दमनकारी शासन का तख्ता पलटने के लिए पराधीन जाती को सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाना चाहिए."

प्रेरक प्रस्तुति माथुर साहब ! काश की आज की युवा पीढ़ी उनकी बात समझ पाती !

Dr (Miss) Sharad Singh said...

क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा के बारे में जान कर अच्छा लगा।

ज्ञानवर्धक लेख के लिए हार्दिक धन्यवाद!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा के बारे में जान कर अच्छा लगा।

विनम्र श्रद्धांजलि.... नमन