Friday, April 13, 2012

दान देना कितना घातक हो सकता है --जानिए अपने ग्रहों से

तमाम  तथा कथित महात्माओ ,पुजारियों,पुरोहितों से आप आए दिन ये प्रवचन सुनते रहते हैं कि खूब दान करो-दान करना पुण्य कार्य है। लेकिन मै आपको सख्त चेतावनी देना चाहता हूँ कि जितना भी दान आप दें उसका खामियाजा आपके सिवा कोई दूसरा नहीं भुगतने जा रहा । आपको ऐसा लग सकता है कि इस सठियाये आदमी को पागल कुत्ते ने काट खाया होगा जो एकदम उल्टी बात बॅक रहा है। ऐसा बिलकुल नहीं है,लगभग 7-8 वर्ष पूर्व आगरा मे मेरे एक क्लाईंट जो UPIDC मे EXEN है(अब लखनऊ मे ही पोस्टेड हैं ) ने फरवरी माह की एक रात लगभग साढ़े दस बजे रात को फोन पर कहा कि वह वृन्दावन से तीर्थ करके लौट रहे थे रास्ते मे उनके साथ डकैती पड़ गई। उन्होने यह भी कहा मेरे जन्मपत्री विश्लेषण मे उनके परिवार के उस समय के तीनों सदस्यों का समय ठीक था फिर ऐसा हादसा क्यों हुआ?मैंने उन्हें अगले दिन अपनी श्रीमती जी के साथ आने को कहा और वह अपनी छोटी बच्ची को भी साथ ले कर अगले दिन आए भी। तीनों की जन्म-पत्री देखने के बाद दिमाग मे कौंधा कि इंजीनियर साहब और उनकी पत्नी दोनों ही 'दान-शील'हैं जरूर इनहोने किसी को भोजन कराया होगा जो इस हादसे का कारण बना है। पूछने पर खुशी से दोनों एक साथ बोले हमने एक नहीं दो भूखों के पेट भरे थे,यह तो पुण्य का कार्य है। मैंने कहा यही कार्य आपके साथ लूट की घटना होने का हेतु है। क्या आप के साथ पहले भी ऐसी घटनाएँ हुई हैं?उन्होने बताया कि जब भोजन तैयार नहीं होता है तो सीधा दे देते हैं। यह भी कुबूल किया कि तीर्थ स्थानों पर ही उनके साथ लूट भी हुई है। 'वैष्णो देवी' के दर्शन के बाद उनकी पत्नी के कुंडल खींचे गए थे जिसमे कान भी छिल गया था। वृन्दावन वाली घटना मे दोनों का सारा कैश और स्वर्ण आभूषण लूटे गए थे। वस्तुतः इंजीनियर साहब का 'सूर्य' उच्च का है और उन्हें अन्न और इससे बने पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए जो वह करते थे और लुटते रहते थे।

जिन लोगों का 'ब्रहस्पति' उच्च का या 'स्व-ग्रही' होता है उन्हें किसी भी मंदिर या उपासना स्थल चाहे वह मस्जिद हो,मजार या चर्च  मे दान नहीं करना चाहिए। इस संबंध मे पहले खुद का उदाहरण-

"हमारी बउआ को बाँके बिहारी मंदिर,वृन्दावन पर अत्यधिक आस्था व विश्वास था। हालांकि 1962 मे उन्होने बाबूजी को अपने पास से (नानाजी -मामाजी से मिले पैसे) देकर वृन्दावन जाने को कहा था और एक हफ्ते मे वहाँ से लौटते मे घर के करीब पहुँचते -पहुँचते बाबू जी के दफ्तर के किसी साथी ने रिक्शा रुकवा कर  सूचना दी कि बाबूजी का ट्रांसफर सिलीगुड़ी हो गया है। आफिस पहुँचते ही उन्हें रिलीव कर दिया जाएगा। पाँच वर्ष वहाँ रहने के दौरान ही ईस्टर्न कमांड अलग बन गया और वापिस सेंट्रल कमांड मे ट्रांसफर मुश्किल था। कानपुर से निर्वाचित भाकपा समर्थित निर्दलीय सांसद कामरेड एस एम बेनर्जी के अथक प्रयासों से मूल रूप से सेंट्रल कमांड से गए लोग वापिस आ सके थे तब बाबूजी मेरठ आए थे।


1984 अप्रैल मे जब यशवन्त लगभग साढ़े चार माह का था बउआ की इच्छा पर हम लोग वृन्दावन -बाँके बिहारी मंदिर गए थे। वहाँ बाबूजी ने रु 10/- देकर यशवन्त को गोसाईञ्जी के माध्यम से मुख्य मूर्ती के द्वार पर मत्था टेकने भेज दिया था। लौट के आने के दो दिन के अंदर मुझे फर्जी इल्जाम लगा कर होटल मुगल से सस्पेंड कर दिया गया था -यूनियन प्रेसीडेंट को मेनेजमेंट ने पहले ही अपनी ओर मिला लिया होगा।


अतः जब बीमारी चलते के बीच ही शालिनी ने वृन्दावन-बाँके बिहारी मंदिर जाने की इच्छा व्यक्त की तो मै जाने का इच्छुक नहीं था। परंतु शालिनी ने बउआ से समर्थन करा दिया तो अनिच्छापूर्वक इतवार को जाने का फैसला करना पड़ा। इस खातिर शनिवार 11 जून को हेयर कटिंग भी कराना पड़ा। 12 जून इतवार को सुबह 08 बजे वाली पेसेंजर ट्रेन से मथुरा जाकर वहाँ से टेम्पो के माध्यम से वृन्दावन गए........ 


16 तारीख,गुरुवार  को फिर मै ड्यूटी नहीं गया। दोपहर मे यशवन्त ने ब्रेड खाने से मना कर दिया तो शालिनी ने कहा वह परांठा नहीं बनाएँगी मुझे बना कर देने को कहा। मैंने यशवन्त को पराँठे खिला दिये तो वह संतुष्ट थीं और उसके खाने के बीच ही सो गई। सोते ही सोते उनका प्राणान्त हो गया था एक परिचित डॉ को बुलवाया तो वह बोले अब दम है ही नहीं अस्पताल ले जाना बेकार है।"

जो लोग 'विद्रोही स्व-स्वर मे ' भी पढ़ते हैं वे इन घटनाओं से पूर्व मे ही वाकिफ होंगे और आगे वर्णित घटनाओ से भी । मेरी छोटी बहन डॉ शोभा माथुर ने BHELकालोनी, झांसी के मंदिर मे रु 1100/- दान दिया और उनकी कार का भयंकर एक्सीडेंट हुआ जिसका मुकदमा 8 वर्ष तक झेला और काफी नुकसान उठाया।

एक और रिश्तेदार ने एक मंदिर मे रु 101/- दान दिया और उनकी माता जी का पैर मे फ्रेक्चर होने से काफी धन बर्बाद हुआ ही वृद्धावस्था मे अपार कष्ट भी उनकी माँ को हुआ।

निकटतम और घनिष्ठतम लोगों के उदाहरण उनकी जन्म-पत्रियों की ओवरहालिंग करने के बाद ही दिये हैं, मेरा ब्रहस्पति स्व-राशि का है बाकी सभी का उच्च का । अब प्रश्न है कि आप कैसे जानेंगे कि आप का कौन सा ग्रह उच्च का या स्व-ग्रही है और उसके लिए क्या-क्या दान नहीं करना चाहिए?इसके लिए निम्न-लिखित तालिका का अवलोकन करें-


क्रम संख्या          ग्रह       उच्च राशि            स्व-राशि 

1-                 सूर्य              मेष (1 )                सिंह (5 )


 2-               चंद्र                 वृष  (2 )                 कर्क (4 )


3-              मंगल             मकर (10 )                 मेष (1 ) और वृश्चिक (8 )


4-              बुध                कन्या (6 )                  मिथुन (3 ) और कन्या (6 )


5-             ब्रहस्पति        कर्क (4 )                     धनु (9 ) और मीन (12 )


6-             शुक्र                मीन (12 )                   वृष (2 ) और तुला (7 )


7-            शनि                 तुला (7 )                     मकर (10 ) और कुम्भ (11 )


8-            राहू                   मिथुन (3 )                 'राहू' और 'केतू' वस्तुतः हमारी पृथिवी के उत्तरी और 

9-            केतू                   धनु (9 )                दक्षिणी      ध्रुव हैं जिन्हें छाया ग्रह के रूप मे गणना मे लिया जाता है

ऊपर क्रम संख्या मे ग्रहों के नाम दिये हैं जबकि राशियों की क्रम संख्या कोष्ठक मे दी गई है। जन्मपत्री मे बारह घर होते हैं और उनमे ये बारह राशिया उस व्यक्ति के जन्म के अनुसार राशियो की क्रम संख्या मे अंकित रहती हैं। उस समय के अनुसार जो ग्रह जिस राशि मे होता है वैसा ही जन्मपत्री मे लिखा जाता है। यदि सूर्य संख्या (1 ) मे है तो समझें कि उच्च का है। ब्रहस्पति यदि संख्या (4 ) मे है तो उच्च का है। इसी प्रकार ग्रह की स्व-राशि भी समझ जाएँगे। अब देखना यह है कि जितने ग्रह उच्च के अथवा स्व-राशि के हैं उनसे संबन्धित पदार्थों का न तो दान करना है और न ही निषेद्ध्य किया गया कार्य करना है वरना कोई न कोई हादसा या नुकसान उठाना ही पड़ेगा। नीचे नवों ग्रहों से संबन्धित निषिद्ध वस्तुओं का अवलोकन करके सुनिश्चित कर लें-


1-सूर्य 

सोना,माणिक्य,गेंहू,किसी भी प्रकार के अन्न से बने पदार्थ,गुड,केसर,तांबा और उससे बने पदार्थ,भूमि-भवन,लाल और गुलाबी वस्त्र,लाल और गुलाबी फूल,लाल कमल का फूल,बच्चे वाली गाय आदि।


2-चंद्र 

चांदी,मोती,चावल,दही,दूध,घी,शंख,मिश्री,चीनी,कपूर,बांस की बनी चीजें जैसे टोकरी-टोकरा,सफ़ेद स्फटिक,सफ़ेद चन्दन,सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद फूल,मछली आदि।


3-मंगल 

किसी भी प्रकार की मिठाई,मूंगा,गुड,तांबा और उससे बने पदार्थ,केसर,लाल चन्दन,लाल फूल,लाल वस्त्र,गेंहू,मसूर,भूमि,लाल बैल आदि।

4-बुध 

छाता,कलम,मशरूम,घड़ा,हरा मूंग,हरे वस्त्र,हरे फूल,सोना,पन्ना,केसर,कस्तूरी,हरे रंग के फल,पाँच-रत्न,कपूर,हाथी-दाँत,शंख,घी,मिश्री,धार्मिक पुस्तकें,कांसा और उससे बने बर्तन आदि।

5-ब्रहस्पति 

सोना,पुखराज,शहद,चीनी,घी,हल्दी,चने की दाल,धार्मिक पुस्तकें,केसर,नमक,पीला चावल,पीतल और इससे बने बर्तन,पीले वस्त्र,पीले फूल,मोहर-पीतल की,भूमि,छाता आदि। कूवारी कन्याओं को भोजन न कराएं और वृद्ध-जन की सेवा न करें (जिनसे कोई रक्त संबंध न हो उनकी )।किसी भी मंदिर मे और मंदिर के पुजारी को दान नहीं देना चाहिए।

6-शुक्र 

हीरा,सोना, सफ़ेद छींट दार चित्र और  वस्त्र,सफ़ेद वस्त्र,सफ़ेद फूल,सफ़ेद स्फटिक,चांदी,चावल,घी,चीनी,मिश्री,दही,सजावट-शृंगार की वस्तुएं,सफ़ेद घोडा,गोशाला को दान,आदि। तुलसी  की पूजा न करें,युवा स्त्री का सम्मान न करें ।


7-शनि 

सोना,नीलम,उड़द,तिल,सभी प्रकार के तेल विशेष रूप से सरसों का तेल,भैंस,लोहा और स्टील तथा इनसे बने पदार्थ,चमड़ा और इनसे बने पदार्थ जैसे पर्स,चप्पल-जूते,बेल्ट,काली गाय,कुलथी, कंबल,अंडा,मांस,शराब आदि।

8-राहू 

सोना,गोमेद,गेंहू,उड़द,कंबल,तिल,तेल सभी प्रकार के,लोहा और स्टील तथा इनके पदार्थ,काला घोडा, काला वस्त्र,काला फूल,तलवार,बंदूक,सप्तनजा,सप्त रत्न,अभ्रक आदि।

9-केतू 

वैदूर्य (लहसुन्यिया),सीसा-रांगा,तिल,सभी प्रकार के तेल,काला वस्त्र, काला फूल,कंबल,कस्तूरी,किसी भी प्रकार के शस्त्र,उड़द,बकरा (GOAT),काली मिर्च,छाता,लोहा-स्टील और इनके बने पदार्थ,सप्तनजा आदि।

पति या पत्नी किसी एक के भी ग्रह उच्च या स्व ग्रही होने पर दोनों मे से किसी को भी उससे संबन्धित दान नहीं करना है और उन दोनों की आय  से किसी तीसरे को भी दान नहीं करना है। 

ठोकर खाने और नुकसान उठाने के बाद काफी ज्योतिष साहित्य देखा उसका अध्यन किया और विद्वानों के विचारों को समझा तब जाकर आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया है। टी वी पर,जगह-जगह प्रवचनों मे अखबारो मे आपको दान देने का महत्व प्रचारित करके नुकसान पहुंचाने का उपक्रम किया जाता है और आप धर्म के नाम पर ठगे जाकर गर्व की अनुभूति करते हैं। यह आप पर है कि ढ़ोंगी-लुटेरे महात्माओ के फेर मे दान देकर नुकसान उठाएँ या फिर इस प्रस्तुतीकरण का लाभ उठाते हुये दान न दें। बेहतर यही है कि दान देकर पाखंडियों की लूट और शोषण को मजबूत न करें। 

1 comment:

vijai Rajbali Mathur said...

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DrMonika Sharma · Calgary, Alberta
Achchi Jankari Mili....