Saturday, October 27, 2012

प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-ये दुनिया अनूठी है (पुनर्प्रकाशन)

 (विशेष-मेरा यह आलेख मई २०१० में  लखनऊ के एक साप्ताहिक समाचार पत्र में प्रकाशित हो चुका है,जन कल्याणार्थ इसे यहाँ भी प्रस्तुत किया जा रहा है.)
 

शुक्रवार, 24 सितम्बर 2010


प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-ये दुनिया अनूठी है 

--- विजय राज बली माथुर

 

एक समय हमारे देश में जगन मिथ्या का मिथ्या का पाठ पढाया जाने लगा था.मध्य अमेरिकी माया सभ्यता ने पहले पहल भविष्यवाणी की थी कि,21  दिसंबर 2012  को यह दुनिया समाप्त हो जाएगी.प्राचीन चीनी पुस्तक चाइनीज़ बुक  ऑफ चेंजेज़ एवं बाइबिल तथा कुछ पौराणिक ग्रन्थ भी ऐसी ही संभावना व्यक्त करते हैं.आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार अमेरिका का येलो स्टोन नेशनल पार्क गर्म सोतों का क्षेत्र है जो दुनिया के सबसे बड़े ज्वालामुखी के ऊपर स्थित है.वैज्ञानिकों के अनुसार हर साड़े छः लाख वर्ष बाद यह ज्वालामुखी फटता है.वैसे यह समय निकल चुका है किन्तु भू-गर्भ वैज्ञानिक २०१२ में इसके फटने का अनुमान लगा रहे हैं.लन्दन की एक महिला ने 1970  के आस पास भविष्यवाणी की थी कि world  will  end  in  1991 .उन्नीस वर्ष बाद भी दुनिया अपनी जगह कायम है.फ्रांसीसी भविष्य वेत्ता नेस्त्रादम ने 1999 में चीन द्वारा अमेरिका पर आक्रमण किये जाने से तृतीय विश्व युद्ध होने की बात कही थी जो नहीं हुआ.वर्ष 2004 में बाबा जी पत्रिका में भविष्यवाणी छपी थी कि पूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी 15 दिन के भीतर सत्ता में वापिस आ जायेंगे.आखिर सभी भविष्यवाणियाँ थोथी क्यों सिद्ध हुईं?बर्कले विश्वविद्यालय के भौतिकी वैज्ञानिकों समेत सभी की भविष्यवाणियाँ 2012 में प्रलय का खौफ पैदा कर सकती हैं परन्तु प्रलय लाने में कामयाब नहीं होंगी-आखिर क्यों?इस अनूठी दुनिया को समझने का  यथार्थ रहस्य हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने शुद्ध वैज्ञानिक आधार पर बहुत पहले ही खोज रखा है-आवश्यकता है बुद्धि का सही प्रयोग कर उसे समझने की.
किसी भी विषय के क्रमबद्ध एवं नियम बद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं और विज्ञान के नियमों में एक निश्चित अनुपात रहता है.उदाहरण के तौर पर -हाइड्रोजन के दो भाग और ऑक्सीजन का एक भाग मिलने से पानी बनेगा.अब यदि हाइड्रोजन के दो भाग के साथ ऑक्सीजन भी दो भाग मिला देंगे तो वह हाइड्रोजन पराक्साइड बनकर उड़ जायेगा.यजुर्वेद 40/5  के अनुसार तद दूरे तदवान्तक अथार्त सम्पूर्ण  ब्रह्मांड में विद्यमान होने के कारण परमात्मा दूर से भी दूर व पास से भी पास है.यजुर्वेद 31 -3 के अनुसार परमात्मा के 1 /4 भाग में यह ब्रह्मांड विद्यमान है अतः ब्रह्मांड के 3 /4 भाग में परमात्मा है.परमात्मा अथार्त ब्रह्मा का दिन और रात कितने समय का है वह इस गणना से स्पष्ट होगा:-
कलयुग-4 लाख 32 हज़ार वर्ष
द्वापर युग (कल*2 )-8 लाख 64 हज़ार वर्ष
त्रेता युग (कल*3 )-12 लाख 96 हज़ार वर्ष
सत युग (कल*4 )-17 लाख 28 हज़ार वर्ष
एक चतुर्युगी=43 लाख 20 हज़ार वर्ष
एक हज़ार चतुर्युगी=43 लाख 20 हज़ार*1000
अथार्त 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का ब्रह्मा का एक दिन और इतना ही समय रात का होता है.
दिन अथार्त सृष्टि और रात अथार्त प्रलय.
वर्तमान समय में इस सृष्टि का 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हज़ार 110 वां वर्ष चल  रहा है  अथार्त अभी भी २ अरब ३४ करोड़ ७० लाख ५० हज़ार ८९० वर्ष यह सृष्टी चलेगी उसी के बाद प्रलय होगी.अतः उससे पूर्व २०१२ या कभी भी प्रलय - भविष्य वाणी अवैज्ञानिक होने के कारण झूठी ही सिद्ध होगी.
मुंबई के श्री वेंकटेश्वर शताब्दी पञ्चांग (जो संवत 2100 तक का है) के अनुसार 21 दिसंबर 2012 को ग्रह स्थिति निम्न प्रकार होगी-
दिन-शुक्रवार
तिथी-नवमी
सूर्य-धनु राशी में
चन्द्रमा-मीन राशी में
मंगल-मकर राशी में
बुध-वृश्चिक राशी में
गुरु -वृष राशी में
शुक्र-वृश्चिक राशी में
शनि-तुला राशी में
राहू-वृश्चिक राशी में
केतु-वृष राशी में
हम और आप जिस दुनिया में रह रहे हैं वह अभी ख़तम होने वाली नहीं है,घबराइये नहीं और परमात्मा की कृति इस इस अनूठी दुनिया में अपने जीवन का भरपूर लुत्फ़ उठाइए.यह दुनिया है क्या और यह जीवन क्या है?यह सृष्टी यह दुनिया तीन तत्वों पर आधारित है-आत्मा,परमात्मा और प्रकृति.इनमे से एक को भी कम करदें तो यह सृष्टी नहीं चल सकती.परमात्मा और आत्मा सखा हैं अजर और अमर हैं,प्रकृति भी नष्ट नहीं होती है परन्तु उस का रूपांतरण हो जाता है.प्रकृति में समस्त पदार्थ ठोस,द्रव और गैस  हैं,ठोस रूप में वह बर्फ है,द्रव रूप में जल  और गैस रूप में हाइड्रोजन व् ऑक्सीजन के परमाणुओं में बदल जाता है.प्रकृति में सत रज और तम के परमाणुओं का सम्मिश्रण पाया जाता है और ये विषम अवस्था में होते हैं तभी सृष्टी का संचालन होता है.इन तीनों की सम अवस्था ही प्रलय की अवस्था है.प्रकृति में हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और कोई भी दो तत्व मिल कर तीसरे का सृजन करते हैं.उदाहरण के लिए गाय के गोबर और दही को एक सम अवस्था में  किसी मिटटी के बर्तन में वर्षा ऋतु में बंद कर के रख दें तो बिच्छू का उद्भव हो जायेगा जो घातक जीव है,जबकि गोबर और दही दोनों ही मानव के लिए कल्याणकारी हैं.अब यदि rectified sprit में बिच्छू को पकड कर डाल दें और जब स्प्रिट में उसका विलयन हो जाए तो फ़िल्टर से छान कर सुरक्षित रखने पर वही बिच्छू दंश उपचार हेतु सटीक औषधी  है.हम देखते हैं कि गोबर  और दही की क्रिया पर प्रतिक्रिया स्वरुप बिच्छू,और बिच्छू और स्प्रिट की क्रिया पर बिच्छू काटे में उपचार हेतु दवा प्राप्त हो जाती है.


2 टिप्‍पणियां:

  1. .

    Very informative and useful post.

    Regards to you and Yashwant ji.

    .
  2. Divya Ji,
    Thanks for your Positive Thinking.

    रविवार, 26 सितम्बर 2010


    प्रलय की भविष्यवाणी झूठी है-यह दुनिया अनूठी है--(अंतिम भाग)

    (पिछली पोस्ट से आगे....)

    प्रकृति में जितने भी जीव हैं उनमे मनुष्य ही केवल मनन करने के कारण श्रेष्ठ है,यह विशेष जीव ज्ञान और विवेक द्वारा अपने उपार्जित कर्मफल को अच्छे या बुरे में बदल सकता है.कर्म तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म का फल अच्छा,दुष्कर्म का फल बुरा होता है.परन्तु सब से महत्वपूर्ण अ-कर्म होता है  जिसका अक्सर लोग ख्याल ही नहीं करते हैं.अ-कर्म वह कर्म है जो किया जाना चाहिए था किन्तु किया नहीं गया.अक्सर लोगों को कहते सुना जाता है कि हमने कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर हमारे साथ बुरा क्यों होता है.ऐसे लोग कहते हैं कि या तो भगवान है ही नहीं या भगवान के घर अंधेर है.वस्तुतः भगवान के यहाँ अंधेर नहीं नीर क्षीर विवेक है परन्तु पहले भगवान को समझें तो सही कि यह क्या है--किसी चाहर दिवारी में सुरक्षित काटी तराशी मूर्ती या  नाडी के बंधन में बंधने वाला नहीं है अतः उसका जन्म या अवतार भी नहीं होता.भगवान तो घट घट वासी,कण कण वासी है उसे किसी एक क्षेत्र या स्थान में बाँधा नहीं जा सकता.भगवान क्या है उसे समझना बहुत ही सरल है--अथार्त भूमि,-अथार्त गगन,व्-अथार्त वायु, I -अथार्त अनल (अग्नि),और -अथार्त-नीर यानि जल,प्रकृति के इन पांच तत्वों का समन्वय ही भगवान है जो सर्वत्र पाए जाते हैं.इन्हीं के द्वारा जीवों की उत्पत्ति,पालन और संहार होता है तभी तो GOD अथार्त Generator,Operator ,Destroyer  इन प्राकृतिक तत्वों को  किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसलिए ये खुदा हैं.

    जब भगवान,गौड और खुदा एक ही हैं तो झगड़ा किस बात का?परन्तु झगड़ा है नासमझी का,मानव द्वारा मनन न करने का और इस प्रकार मनुष्यता से नीचे गिरने का.इस संसार में कर्म का फल कैसे मिलता है,कब मिलता है सब कुछ एक निश्चित प्रक्रिया के तहत ही होता है जिसे समझना बहुत सरल है किन्तु निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा जटिल बना दिया गया है.हम जितने भी सद्कर्म,दुष्कर्म या अकरम करते है उनका प्रतिफल उसी अनुपात में मिलना तय है,परन्तु जीवन काल में जितना फल भोग उसके अतिरिक्त कुछ शेष भी बच जाता है.यही शेष अगले जनम में प्रारब्ध(भाग्य या किस्मत) के रूप में प्राप्त होता है.अब मनुष्य अपने मनन द्वारा बुरे को अच्छे में बदलने हेतु एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा समाधान कर सकता है.यदि समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जाए तो सुफल परन्तु यदि ढोंग-पाखंड विधि से किया जाये तो प्रतिकूल फल मिलता है.

    प्रारब्ध को समझने हेतु जन्म समय के ग्रह-नक्षत्रों से गणना करते हैं और उसी के अनुरूप समाधान प्रस्तुत करते हैं.अधिकाँश लोग इस वैज्ञानिक नहीं चमत्कार का लबादा ओड़ कर भोली जनता को उलटे उस्तरे से मूढ़ते हैं.गाँठ के पूरे किन्तु अक्ल के अधूरे लोग तो खुशी खुशी मूढ़ते हैं लेकिन अभावग्रस्त  पीढित लोगों को भी भयाक्रांत करके जबरन मूढा जाता है जो कि ज्योतिष के नियमों के विपरीत है.ज्योतिष में २+२=४ ही होंगे किन्तु जब पौने चार या सवा चार बता कर लोगों को गुमराह किया जाए तो वह ज्योतिष नहीं ठगी का उदहारण बन जाता है .ज्योतिष जीवन को सही दिशा में चलाने के संकेत देता है.बस आवश्यकता है सही गणना करने की और समय को साफ़ साफ़ समझने और समझाने की.जिस प्रकार धूप या वर्षा को हम रोक तो नहीं सकते परन्तु उसके प्रकोप से बचने हेतु छाता और बरसाती का प्रयोग कर लेते हैं उसी प्रकार जीवन में प्रारब्ध के अनुसार आने वाले संकटों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे बचाव का प्रबंध किया जा सकता है और यही ज्योतिष विज्ञान का मूल आधार है.कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के कारण इस ज्योतिष का व्यापारीकरण करके इसके वैज्ञानिक आधार को क्षति पहुंचा देते हैं उन से बचने और बचाने की आवश्यकता है.मनुष्य अपने ग्रह-नक्षत्रों द्वारा नियंत्रित पर्यावरण की उपज है.

    पर्यावरण को शुद्ध रखना और ग्रह नक्षत्रों का शमन करना ज्योतिष विज्ञान सिखाता है.हम ज्योतिष के वैज्ञानिक नियमों का पालन कर के अनूठी दुनिया  का अधिक से अधिक लुत्फ़ उठा सकते हैं.आवश्यकता है सच को सच स्वीकार करने की और अपनी इस धरती को तीन लोक से न्यारी बनाने की. 

    1 टिप्पणी:

    विजय जी नमस्‍कार,

    अच्‍छा लगा आपको पढ़कर... धरती को न्‍यारी बनाने के इस काम में ब्‍लॉग की सहायता से आपने अच्‍छा कदम उठाया है। उम्‍मीद है लेखों का काफिला ऐसे ही जारी रहेगा।
     

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